Sunday, May 15, 2011

16 मई : आज का पंचांग एवं मुहूर्त



16 मई 2011 : सोमवार, रवि उत्तरायन, वैशाख शुक्लपक्ष, शोभन नाम संवत्सर, संवत् 2068, ग्रीष्म ऋतु।


तिथि- चतुर्दशी


नक्षत्र- स्वाती रात 8.15 से विशाखा


सूर्योदय- 05:56


सूर्यास्त- 06:53


अक्षांक्ष- 23:11 उत्तर


देशांश- 75:43 पूर्व


ग्रह स्थिति- चंद्र तुला में, सूर्य वृष में, मंगल मेष में, बुध मेष में, गुरू मेष में, शुक्र मेष में, शनि कन्या राशि में, राहु वृश्चिक में और केतु वृष राशि में स्थित है।


किस दिशा में यात्रा- जहां तक संभव हो पश्चिम दिशा में यात्रा न करें यदि आवश्यक हो तो पान खाकर यात्रा प्रारंभ करे।


चोरी गई वस्तु- पश्चिम दिशा में चोरी गई समझें, कोशिश करें तो मिल जाएगी।




Varinder Kumar
ASTROLOGER
Shop No 74 Ghumar Mandi
Ludhiana Punjab India
01614656864
09915081311
email: sun_astro37@yahoo.com

हनुमान चालीसा को पढऩा ही जरूरी क्यों है?



पूजा-पाठ में अधिकांश लोग मंत्रों को, शब्दों को रट लेते हैं। यह सही है कि श्रद्धा से पढ़े हुए शब्द अपना असर करते हैं, लेकिन अर्थ समझकर दिल से यदि पंक्तियां बोली जाएंगी तो परिणाम और सुंदर होंगे। हनुमानचालीसा की ३९वीं चौपाई में तुलसीदासजी कहते हैं-

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा। 

ऐसा नहीं लिखा है कि जो यह 'बोले', लिखा है 'पढ़े', क्योंकि पुस्तक खोलकर पढऩे का मतलब है कि नेत्रों से पढऩा ही पड़ेगा। तुलसीदासजी यहां ऐसा लिख सकते थे कि जो यह 'सुने' हनुमान चालीसा। ऐसा होता तो लोगों को और आराम मिल जाता। किसी को सामने बैठा लेते कि सुनाओ, पांच बार वो सुना देता, हम सुन लेते, लेकिन तुलसीदासजी ने स्पष्ट लिखा है जो यह 'पढ़ै' हनुमान चालीसा।

पढऩा खुद को पड़ता है, सुना कोई दूसरा भी सकता है। 'पढ़ै' शब्द का एक और गूढ़ अर्थ है। यदि हम जप भी करें तो हृदय की पुस्तक पर उस जप को पढ़ते रहें। कहने का मतलब यह है कि गाएं भी तो अंतर्मुखी होकर हृदय की पुस्तक पर पढ़कर गाएं। मन की पुस्तक खुली हुई है और हम उसे पढ़ रहे हैं, तो आनन्द अलग ही आएगा। इसलिए गोस्वामीजी ने कहा कि पढऩा ही पड़ेगा।

आगे वर्णन आया है 'होय सिद्धि साखी गौरीसा।' तुलसीदासजी ने प्रमाण दिया 'साखी गौरीसा।' गौरीसा का अर्थ है शंकर और पार्वतीजी। इनकी शपथ ली गई है। क्योंकि इन्हें श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक माना गया है। कहने का मतलब यह है कि श्री हनुमानचालीसा श्रद्धा और विश्वास के साक्ष्य में पढ़ी जाए। हमारे भीतर श्रद्धा और विश्वास है इसको प्रकट करने का एक सरल तरीका है जरा मुस्कराइए...।

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कठिन लक्ष्य भी आसान बना दे ये 3 सटीक तरीके



हिन्दू धर्म पंचाग का वैशाख माह विष्णु भक्ति का पुण्य काल माना गया है। भगवान विष्णु का स्वरूप शांत, सौम्य, सत्वगुणी, आनंदमयी माना गया है। किंतु विष्णु अवतार से जुडें पौराणिक प्रसंग साफ करते हैं कि धर्म रक्षा और धर्म आचरण की सीख देने के लिए लिए युग और काल के मुताबिक भगवान विष्णु अलग-अलग स्वरूपों में प्रकट हुए।

वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी (16 मई) भी भगवान विष्णु के चौथे अवतार भगवान नृसिंह के प्राकट्य की पुण्य घड़ी मानी जाती है। यहां हम भगवान नृसिंह की कथा में छुपे उन छुपे संदेशों का बता रहे हैं, जो जीवन में सफलता की चाहत रखने वाले हर इंसान के लिए सटीक उपाय भी साबित हो सकते हैं -

नृसिंह अवतार की कथा है कि धर्म और ईश्वर विरोधी हिरण्यकशिपु द्वारा जब अपने ही विष्णु भक्त पुत्र को ईश्वर भक्ति से रोकने के लिए घोर अत्याचार किए गए, तब धर्म और भक्त की रक्षा के लिए भगवान विष्णु, नृसिंह यानी आधे सिंह और आधे मानव शरीर के असाधारण व उग्र स्वरुप में प्रकट हुए और हिरण्यकशिपु का अंत कर दिया।

इस नृसिंह कथा में तीन प्रमुख पात्र हैं - हिरण्यकशिपु, भक्त प्रह्लाद और भगवान नृसिंह। जिनसे जीवन को सही दिशा में ले जाने और लक्ष्य पाने के 3 गुर सीखे जा सकते हैं -

हिरण्यकशिपु - यह सबल, सक्षम होकर भी दंभ और अहंकार का प्रतीक है।  घमण्ड ही सभी बुराईयों की जड़ माना गया है। जिससे कर्म, विचार और व्यवहार भी बदतर हो जाते हैं। संकेत है कि अगर आप जीवन को बेहतर और सफल बनाना है तो अहं को छोड़ सहज, सरल बन बडप्पन के साथ जीना सीखें।

भक्त प्रह्लाद - प्रह्लाद भक्ति, समर्पण, आत्मविश्वास और पुरुषार्थ का प्रतीक। संकेत है कि मकसद को पाने के लिए भक्ति की तरह ही मनोयोग जरूरी है। तमाम मुश्किल हालातों के बाद भी भक्त  प्रह्लाद की तरह पूरे आत्मविश्वास और जज्बे  के साथ लक्ष्य को पाने के लिए कटिबद्ध रहें। तभी भगवान नृसिंह कृपा की भांति सफलता की ऊंचाईयों और लक्ष्य को पाया जा सकता है।

भगवान नृसिंह - भगवान नृसिंह स्वरूप यही सिखाता है कि तन, मन और कर्म से हिरण्युकशिपु रूपी बुराईयों और कमजोरियों को निकालकर कर भक्त प्रह्लाद की तरह निडर बन जीवन को सफल बनाने के लिए अच्छाई की राह न छोड़े। बल्कि गुणी बन, मजबूत इच्छाशक्ति और भरोसे के साथ आगे बढते रहें। यहीं नहीं नृसिंह के असाधारण स्वरूप की तरह ही असाधारण कोशिशों से नामुमकिन लक्ष्य भी पाने को दृढ़ संकल्पित रहें।




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